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मिसिर हरिहरपुरी के दोहे





मिसिर हरिहरपुरी के दोहे


क्रूर हृदय को जान लो, भूत-प्रेत का गेह।

यहाँ कभी रहता नहीं, शीतलता का मेह।।


संस्कार की हीनता, में नीचों का वास।

नीचों का होता सदा,नित नंगा उपहास।।


दया-धर्म को त्याग कर, मानव बनता नीच।

मार रहा दुर्गंध है, जैसे दूषित कीच।।


ईर्ष्या -नद में डूब कर, बनता पतित पिशाच।

सदा टूटता सहज ही ,जैसे टूटत काँच।।


क्रोधी को पापी समझ, करता हिंसक काम।

सूकर बन कर घूमता, रचता गन्दा ग्राम।।


भैंसा जैसा मुँह लिये, अहंकार में चूर।

मस्तक काला रंग से, रंगा हुआ भरपूर।।


कमजोरों को मार कर, होता बहुत निहाल।

पैसा पाने के लिए, चलता गन्दी चाल।।






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1 Comments

Sachin dev

31-Dec-2022 06:06 PM

Shandar 👍🌺

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